UP Shikshamitra Permanent News: यूपी के शिक्षामित्रों की भूख हड़ताल, स्थाईकरण और मानदेय वृद्धि की मांग

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UP Shikshamitra Permanent News: उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। इको गार्डन में 19 दिनों से जारी धरने के साथ-साथ उन्होंने भूख हड़ताल भी शुरू कर दी है। उनकी मुख्य मांगें स्थाईकरण और मानदेय में वृद्धि हैं। जानिए इस आंदोलन से जुड़ी पूरी जानकारी और शिक्षामित्रों की स्थिति।

UP Shikshamitra Permanent News: शिक्षामित्रों का लंबा संघर्ष: स्थाईकरण की मांग

UP Shikshamitra Permanent News: उत्तर प्रदेश में लाखों शिक्षामित्र पिछले कई वर्षों से अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। वे सहायक अध्यापक के रूप में कार्य कर रहे हैं, लेकिन उन्हें नियमित शिक्षकों की तरह सुविधाएं और वेतन नहीं मिलता। उनकी सबसे प्रमुख मांग उन्हें स्थाई किया जाना है।

शिक्षामित्रों का कहना है कि उन्होंने वर्षों तक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, और अब उन्हें स्थाई नौकरी का अधिकार मिलना चाहिए।

विशेष रूप से, लगभग 50,000 से अधिक शिक्षामित्र ऐसे हैं जिन्होंने TET (शिक्षक पात्रता परीक्षा) और CTET (केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा) दोनों पास कर ली हैं, और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के मानकों के अनुसार पूरी तरह योग्य हैं। इसके बावजूद, उन्हें अभी तक स्थाई नौकरी नहीं मिली है।

इको गार्डन में 19 दिनों से जारी धरना और भूख हड़ताल

UP Shikshamitra Permanent News: अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने के लिए शिक्षामित्रों ने लखनऊ के इको गार्डन में 19 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन जारी रखा है। इस भीषण गर्मी में, जहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक है, शिक्षामित्र अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना, अपने बच्चों और बुजुर्ग माता-पिता के साथ धरना देने को मजबूर हैं।

शनिवार को उन्होंने अपनी मांगों को और मजबूती से रखने के लिए भूख हड़ताल भी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि यदि इस गर्मी में किसी की तबीयत बिगड़ती है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी। यह आंदोलन उनकी हताशा और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।

मानदेय वृद्धि की आवश्यकता: 10,000 रुपये में गुजारा मुश्किल

UP Shikshamitra Permanent News: स्थाईकरण के साथ-साथ, शिक्षामित्रों की एक और बड़ी मांग उनके मानदेय में वृद्धि है। वर्तमान में, उन्हें प्रति माह केवल 10,000 रुपये का मानदेय मिलता है, जो आज की महंगाई में जीवन यापन के लिए अपर्याप्त है।

शिक्षामित्रों का कहना है कि इस मामूली मानदेय से उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्च, परिवार का पालन-पोषण और बूढ़े माता-पिता की बीमारी का इलाज कराना बेहद मुश्किल हो गया है।

उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि उनके मानदेय को कम से कम 20,000 से 25,000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाया जाए, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।

अन्य महत्वपूर्ण मांगें और सुविधाएं

UP Shikshamitra Permanent News: शिक्षामित्रों की मांगों में केवल स्थाईकरण और मानदेय वृद्धि ही नहीं, बल्कि अन्य महत्वपूर्ण सुविधाएं भी शामिल हैं। वे 12 महीने का उचित मानदेय दिए जाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में उन्हें केवल 11 महीने का मानदेय मिलता है।

इसके अलावा, उन्होंने चिकित्सीय अवकाश (मेडिकल लीव), 14 आकस्मिक अवकाश (कैजुअल लीव) और अन्य सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं की भी मांग की है। उनका तर्क है कि जब वे नियमित शिक्षकों की तरह ही कार्य करते हैं, तो उन्हें समान सुविधाएं क्यों नहीं मिलनी चाहिए?

सरकार पर दबाव और भविष्य की रणनीति

UP Shikshamitra Permanent News: शिक्षामित्रों का यह आंदोलन सरकार पर उनकी मांगों को मानने का दबाव बना रहा है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका धरना और भूख हड़ताल जारी रहेगा।

यह देखना होगा कि सरकार इस आंदोलन पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या शिक्षामित्रों को उनका हक मिल पाता है।

यह मुद्दा न केवल शिक्षामित्रों के भविष्य से जुड़ा है, बल्कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। शिक्षामित्रों का यह संघर्ष उनके अधिकारों और सम्मान की लड़ाई है, जिसमें वे पूरी दृढ़ता से खड़े हैं।

शिक्षामित्रों के मुद्दे का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य Read More

शिक्षामित्रों का मुद्दा उत्तर प्रदेश में दशकों पुराना है। यह संघर्ष 1999 में शुरू हुआ था जब प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई थी। शुरुआत में उन्हें संविदा पर रखा गया था, लेकिन समय के साथ उनकी भूमिका और जिम्मेदारियां नियमित शिक्षकों के समान हो गईं।

UP Shikshamitra Permanent News: 2014 में, तत्कालीन सरकार ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित करने का निर्णय लिया, जिससे उन्हें कुछ राहत मिली। हालांकि, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस समायोजन को रद्द कर दिया, जिससे हजारों शिक्षामित्रों का भविष्य अधर में लटक गया।

इस फैसले के बाद से शिक्षामित्र लगातार अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विभिन्न सरकारों ने उनके मानदेय में वृद्धि और अन्य सुविधाएं देने का आश्वासन दिया है, लेकिन शिक्षामित्रों का कहना है कि ये कदम उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं हैं।

वे चाहते हैं कि उन्हें पूर्ण रूप से नियमित किया जाए और उन्हें वह सम्मान और सुरक्षा मिले जिसके वे हकदार हैं। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ही उनके वर्तमान आंदोलन की तीव्रता और उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।

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